श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 53: सीता का रावण को धिक्कारना  »  श्लोक 26
 
 
श्लोक  3.53.26 
 
 
तदा भृशार्तां बहु चैव भाषिणीं
विलापपूर्वं करुणं च भामिनीम्।
जहार पापस्तरुणीं विचेष्टतीं
नृपात्मजामागतगात्रवेपथु:॥ २६॥
 
 
अनुवाद
 
  तब वह पापी रावण अधिक बोझ के कारण काँपते हुए शरीर वाली विलापपूर्वक करुणामय वचन बोलती हुई और तरह-तरह की चेष्टाएँ करती हुई उस तरुणी राजकुमारी सीता को हर ले गया।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्येऽरण्यकाण्डे त्रिपञ्चाश: सर्ग: ॥ ५ ३॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके अरण्यकाण्डमें तिरपनवाँ सर्ग पूरा हुआ ॥ ५ ३॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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