श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 53: सीता का रावण को धिक्कारना  »  श्लोक 23-25h
 
 
श्लोक  3.53.23-25h 
 
 
क्व गतो लप्स्यसे शर्म मम भर्तुर्महात्मन:।
निमेषान्तरमात्रेण विना भ्रातरमाहवे॥ २३॥
राक्षसा निहता येन सहस्राणि चतुर्दश।
कथं स राघवो वीर: सर्वास्त्रकुशलो बली॥ २४॥
न त्वां हन्याच्छरैस्तीक्ष्णैरिष्टभार्यापहारिणम्।
 
 
अनुवाद
 
  ‘हे राक्षस, अपने पति महात्मा राघव की शरण में मैंने शांति पाई है। वे अपने भाई लक्ष्मण के सहायता के बिना युद्ध में पलक झपकते ही चौदह हजार राक्षसों का नाश कर सकते हैं। वे सभी अस्त्रों के प्रयोग में कुशल और बलशाली हैं। इसलिए राघव जी तुम्हारे जैसी पापी और मेरा अपहरण करने वाले को तीखे बाण मारकर मौत के घाट उतार देंगे।’
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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