श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 53: सीता का रावण को धिक्कारना  »  श्लोक 21-22
 
 
श्लोक  3.53.21-22 
 
 
नहि त्वमीदृशं कृत्वा तस्यालीकं महात्मन:॥ २१॥
धारितुं शक्ष्यसि चिरं विषं पीत्वेव निर्घृण।
बद्धस्त्वं कालपाशेन दुर्निवारेण रावण॥ २२॥
 
 
अनुवाद
 
  ‘निर्दयी निशाचर! तू महात्मा श्रीरामका ऐसा महान् अपराध करके विषपान किये हुए मनुष्यकी भाँति अधिक कालतक जीवन धारण नहीं कर सकेगा। रावण! तू अटल कालपाशसे बँध गया है॥ २१-२२॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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