श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 53: सीता का रावण को धिक्कारना  »  श्लोक 19-21h
 
 
श्लोक  3.53.19-21h 
 
 
व्यक्तं हिरण्मयांस्त्वं हि सम्पश्यसि महीरुहान्।
नदीं वैतरणीं घोरां रुधिरौघविवाहिनीम्॥ १९॥
खड्गपत्रवनं चैव भीमं पश्यसि रावण।
तप्तकाञ्चनपुष्पां च वैदूर्यप्रवरच्छदाम्॥ २०॥
द्रक्ष्यसे शाल्मलीं तीक्ष्णामायसै: कण्टकैश्चिताम्।
 
 
अनुवाद
 
  रावण! तुम्हें स्वर्णमय वृक्ष दिख रहे हैं, रक्त की धारा बहने वाली भयानक वैतरणी नदी का दर्शन हो रहा है, भयानक तलवारों के पत्तों वाले वन को भी देखना चाहते हो और जिसमें तपाया हुआ सोना जैसे फूल तथा श्रेष्ठ नीलमणि जैसे पत्ते हैं और जिसमें लोहे के काँटे लगे हैं, उस नुकीली शाल्मलि का भी अब तुम जल्द ही दर्शन करोगे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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