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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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सर्ग 53: सीता का रावण को धिक्कारना
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श्लोक 18
श्लोक
3.53.18
पश्यामीह हि कण्ठे त्वां कालपाशावपाशितम्।
यथा चास्मिन् भयस्थाने न बिभेषि निशाचर॥ १८॥
अनुवाद
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‘निशाचर! मैं देखती हूँ, तेरे गलेमें कालकी फाँसी पड़ चुकी है, इसीसे इस भयके स्थानपर भी तू निर्भय बना हुआ है॥ १८॥
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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