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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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सर्ग 53: सीता का रावण को धिक्कारना
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श्लोक 15-16h
श्लोक
3.53.15-16h
नह्यहं तमपश्यन्ती भर्तारं विबुधोपमम्॥ १५॥
उत्सहे शत्रुवशगा प्राणान् धारयितुं चिरम्।
अनुवाद
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मैं अपने पति का दर्शन न पाकर, जो देवताओं के समान है, बहुत समय तक शत्रु के वश में रहते हुए अपने प्राणों को धारण नहीं कर पाऊँगी।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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