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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 3: अरण्य काण्ड
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सर्ग 53: सीता का रावण को धिक्कारना
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श्लोक 1
श्लोक
3.53.1
खमुत्पतन्तं तं दृष्ट्वा मैथिली जनकात्मजा।
दु:खिता परमोद्विग्ना भये महति वर्तिनी॥ १॥
अनुवाद
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देखो, मिथिलेश कुमारी जनकात्मजा राक्षसराज रावण को आकाश में उड़ते हुए देखकर बहुत दुःखी और परेशान हो गई हैं। वे अब बड़े भय में पड़ गयी हैं।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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