श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 52: रावण द्वारा सीता का अपहरण  »  श्लोक 8-9
 
 
श्लोक  3.52.8-9 
 
 
क्रोशन्तीं राम रामेति रामेण रहितां वने।
जीवितान्ताय केशेषु जग्राहान्तकसंनिभ:॥ ८॥
प्रधर्षितायां वैदेह्यां बभूव सचराचरम्।
जगत् सर्वममर्यादं तमसान्धेन संवृतम्॥ ९॥
 
 
अनुवाद
 
  उस काल के समान विकराल राक्षस ने सीता के केश पकड़ लिये, जो श्रीराम के बिना जंगल में रह रही थीं और लगातार राम-राम का जाप कर रही थीं। सीता का इस प्रकार अपमान होने से पूरा चराचर जगत अव्यवस्थित और अंधकार से ढका हुआ लग रहा था।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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