वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
»
काण्ड 3: अरण्य काण्ड
»
सर्ग 52: रावण द्वारा सीता का अपहरण
»
श्लोक 5
श्लोक
3.52.5
त्राहि मामद्य काकुत्स्थ लक्ष्मणेति वराङ्गना।
सुसंत्रस्ता समाक्रन्दच्छृण्वतां तु यथान्तिके॥ ५॥
अनुवाद
play_arrowpause
"काकुत्स्थ! लक्ष्मण! अब आप दोनों ही मेरी रक्षा करें।" यह कहते हुए अत्यंत भयभीत सुंदरी सीता इस प्रकार विलाप करने लगी, जिससे निकटवर्ती देवता और मनुष्य सुन सके।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.