उस समय मन-मोहक दाँत और पवित्र मुसकान वाली मिथिलेशकुमारी सीता, अपने परिजनों से बिछड़ जाने के कारण भयभीत हो उठीं। उन्हें अपने पति श्री राम और भाई लक्ष्मण को न देखकर कष्ट हो रहा था। उनके चेहरे का रंग फीका पड़ गया और वे व्यथित दिखाई देने लगीं।
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्येऽरण्यकाण्डे द्विपञ्चाश: सर्ग: ॥ ५ २॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके अरण्यकाण्डमें बावनवाँ सर्ग पूरा हुआ ॥ ५ २॥