श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 52: रावण द्वारा सीता का अपहरण  »  श्लोक 44
 
 
श्लोक  3.52.44 
 
 
ततस्तु सा चारुदती शुचिस्मिता
विनाकृता बन्धुजनेन मैथिली।
अपश्यती राघवलक्ष्मणावुभौ
विवर्णवक्त्रा भयभारपीडिता॥ ४४॥
 
 
अनुवाद
 
  उस समय मन-मोहक दाँत और पवित्र मुसकान वाली मिथिलेशकुमारी सीता, अपने परिजनों से बिछड़ जाने के कारण भयभीत हो उठीं। उन्हें अपने पति श्री राम और भाई लक्ष्मण को न देखकर कष्ट हो रहा था। उनके चेहरे का रंग फीका पड़ गया और वे व्यथित दिखाई देने लगीं।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्येऽरण्यकाण्डे द्विपञ्चाश: सर्ग: ॥ ५ २॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके अरण्यकाण्डमें बावनवाँ सर्ग पूरा हुआ ॥ ५ २॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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