अरे दयालु प्रभु! जब श्रीरामचन्द्रजी की धर्मपत्नी, विदेह नन्दिनी सीता को रावण हरकर ले जा रहा है, तब यही तो कहना पड़ता है कि ‘संसार में धर्म नहीं रहा, सत्य भी कहाँ है? सरलता और दया का भी सर्वथा लोप हो गया है।’ इस प्रकार वहाँ एकत्रित हुए समस्त प्राणी विलाप कर रहे थे। मृगों के बच्चे भयभीत होकर दीन मुख से रो रहे थे।