श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 52: रावण द्वारा सीता का अपहरण  »  श्लोक 39-40
 
 
श्लोक  3.52.39-40 
 
 
नास्ति धर्म: कुत: सत्यं नार्जवं नानृशंसता।
यत्र रामस्य वैदेहीं सीतां हरति रावण:॥ ३९॥
इति भूतानि सर्वाणि गणश: पर्यदेवयन्।
वित्रस्तका दीनमुखा रुरुदुर्मृगपोतका:॥ ४०॥
 
 
अनुवाद
 
  अरे दयालु प्रभु! जब श्रीरामचन्द्रजी की धर्मपत्नी, विदेह नन्दिनी सीता को रावण हरकर ले जा रहा है, तब यही तो कहना पड़ता है कि ‘संसार में धर्म नहीं रहा, सत्य भी कहाँ है? सरलता और दया का भी सर्वथा लोप हो गया है।’ इस प्रकार वहाँ एकत्रित हुए समस्त प्राणी विलाप कर रहे थे। मृगों के बच्चे भयभीत होकर दीन मुख से रो रहे थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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