श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 52: रावण द्वारा सीता का अपहरण  »  श्लोक 37
 
 
श्लोक  3.52.37 
 
 
जलप्रपातास्रमुखा: शृङ्गैरुच्छ्रितबाहुभि:।
सीतायां ह्रियमाणायां विक्रोशन्तीव पर्वता:॥ ३७॥
 
 
अनुवाद
 
  सीता के हरन के समय वहाँ के पर्वतों से अश्रुधारा सी बह चली। ऊँचे-ऊँचे शिखरों ने मानो अपनी भुजाएँ फैलाकर जोर-जोर से चीत्कार करना शुरू कर दिया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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