उत्पातवाताभिरता नानाद्विजगणायुता:।
मा भैरिति विधूताग्रा व्याजह्रुरिव पादपा:॥ ३४॥
अनुवाद
रावण के द्वारा उत्पन्न की गई प्रलयकारी हवाओं के झोंकों से हिलते हुए वृक्षों पर तरह-तरह के पक्षी शोर मचा रहे थे। उन्हें देखकर ऐसा लग रहा था मानो वे वृक्ष अपने सिरों को हिला-हिलाकर संकेत करते हुए सीता से कह रहे हैं कि ‘तुम डरो मत’।