श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 52: रावण द्वारा सीता का अपहरण  »  श्लोक 30
 
 
श्लोक  3.52.30 
 
 
तरुप्रवालरक्ता सा नीलाङ्गं राक्षसेश्वरम्।
प्रशोभयत वैदेही गजं कक्ष्येव काञ्चनी॥ ३०॥
 
 
अनुवाद
 
  रावण के नीले रंग के विशाल शरीर पर सीता ठीक उसी तरह सुशोभित हो रही थीं, जैसे हाथी की पीठ पर सुंदर सुनहरा अंकुश सुशोभित होता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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