श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 52: रावण द्वारा सीता का अपहरण  »  श्लोक 19-20
 
 
श्लोक  3.52.19-20 
 
 
बभूव जलदं नीलं भित्त्वा चन्द्र इवोदित:।
सुललाटं सुकेशान्तं पद्मगर्भाभमव्रणम्॥ १९॥
शुक्लै: सुविमलैर्दन्तै: प्रभावद्भिरलंकृतम्।
तस्या: सुनयनं वक्त्रमाकाशे रावणाङ्कगम्॥ २०॥
 
 
अनुवाद
 
  सीता का मुख आकाश में रावण की गोद में ऐसा जान पड़ता था मानो काले बादलों की परत को चीरता हुआ चन्द्रमा उदय हो रहा हो। उनका ललाट सुंदर था, केश सुंदर थे, चेहरा कमल के गर्भ के समान शोभायमान था, चेचक आदि के दागों से रहित था। उनके दाँत सफेद, निर्मल और चमकीले थे और नेत्र सुंदर थे। उनका मुख आकाश में रावण की गोद में ऐसा लग रहा था मानो नीले मेघों के बीच से चाँद निकल आया हो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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