स राक्षसरथे पश्यञ्जानकीं बाष्पलोचनाम्।
अचिन्तयित्वा बाणांस्तान् राक्षसं समभिद्रवत्॥ ९॥
अनुवाद
देखते ही देखते जटायु महाराज ने रावण के रथ पर बैठी जानकी को रोते हुए देखा। उनको देखकर पक्षियों में श्रेष्ठ जटायु ने बदन में लगे हुए तीरों की परवाह न करते हुए एकदम से रावण पर हमला बोल दिया।