श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 51: जटायु तथा रावण का घोर युद्ध और रावण के द्वारा जटायु का वध  »  श्लोक 46
 
 
श्लोक  3.51.46 
 
 
ततस्तु तं पत्ररथं महीतले
निपातितं रावणवेगमर्दितम्।
पुनश्च संगृह्य शशिप्रभानना
रुरोद सीता जनकात्मजा तदा॥ ४६॥
 
 
अनुवाद
 
  रावण के प्रबल वेग के कारण जटायु धराशायी होकर कुचले गये थे, तब सीता ने चन्द्रमा के समान मुख वाली जनकराज की पुत्री होने के कारण दुबारा वहाँ रुदन करना प्रारम्भ कर दिया।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्येऽरण्यकाण्डे एकपञ्चाश: सर्ग:॥ ५१॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके अरण्यकाण्डमें इक्यावनवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ ५१॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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