रावण के प्रबल वेग के कारण जटायु धराशायी होकर कुचले गये थे, तब सीता ने चन्द्रमा के समान मुख वाली जनकराज की पुत्री होने के कारण दुबारा वहाँ रुदन करना प्रारम्भ कर दिया।
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्येऽरण्यकाण्डे एकपञ्चाश: सर्ग:॥ ५१॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके अरण्यकाण्डमें इक्यावनवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ ५१॥