श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 51: जटायु तथा रावण का घोर युद्ध और रावण के द्वारा जटायु का वध  »  श्लोक 45
 
 
श्लोक  3.51.45 
 
 
तं नीलजीमूतनिकाशकल्पं
सपाण्डुरोरस्कमुदारवीर्यम्।
ददर्श लङ्काधिपति: पृथिव्यां
जटायुषं शान्तमिवाग्निदावम्॥ ४५॥
 
 
अनुवाद
 
  लंकापति रावण ने नीलवर्णी मेघ के समान काली जटा वाले, श्वेतवर्णी छाती वाले, अति पराक्रमी जटायु को धरती पर ऐसे पड़े हुए देखा, जैसे कोई वीरान बैठक हो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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