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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 3: अरण्य काण्ड
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सर्ग 51: जटायु तथा रावण का घोर युद्ध और रावण के द्वारा जटायु का वध
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श्लोक 44
श्लोक
3.51.44
तं दृष्ट्वा पतितं भूमौ क्षतजार्द्रं जटायुषम्।
अभ्यधावत वैदेही स्वबन्धुमिव दु:खिता॥ ४४॥
अनुवाद
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रावण द्वारा घायल होकर जख्मों से लथपथ जटायु को जब सीता ने धरती पर पड़ा हुआ देखा, तो वे शोक से व्याकुल होकर उनके पास दौड़ीं।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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