वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
»
काण्ड 3: अरण्य काण्ड
»
सर्ग 51: जटायु तथा रावण का घोर युद्ध और रावण के द्वारा जटायु का वध
»
श्लोक 33-34
श्लोक
3.51.33-34
एवमुक्त्वा शुभं वाक्यं जटायुस्तस्य रक्षस:।
निपपात भृशं पृष्ठे दशग्रीवस्य वीर्यवान्॥ ३३॥
तं गृहीत्वा नखैस्तीक्ष्णैर्विददार समन्तत:।
अधिरूढो गजारोहो यथा स्याद् दुष्टवारणम्॥ ३४॥
अनुवाद
play_arrowpause
इस प्रकार शुभ वचन कहकर वीर जटायु ने रावण की पीठ पर जोर से हमला किया और उसे पकड़कर अपने तीखे नाखूनों से उसे चारों तरफ से चीरने लगे। मानो कोई हाथी पर चढ़ा हुआ सवार उसे अंकुश से मार रहा हो।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.