श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 51: जटायु तथा रावण का घोर युद्ध और रावण के द्वारा जटायु का वध  »  श्लोक 33-34
 
 
श्लोक  3.51.33-34 
 
 
एवमुक्त्वा शुभं वाक्यं जटायुस्तस्य रक्षस:।
निपपात भृशं पृष्ठे दशग्रीवस्य वीर्यवान्॥ ३३॥
तं गृहीत्वा नखैस्तीक्ष्णैर्विददार समन्तत:।
अधिरूढो गजारोहो यथा स्याद् दुष्टवारणम्॥ ३४॥
 
 
अनुवाद
 
  इस प्रकार शुभ वचन कहकर वीर जटायु ने रावण की पीठ पर जोर से हमला किया और उसे पकड़कर अपने तीखे नाखूनों से उसे चारों तरफ से चीरने लगे। मानो कोई हाथी पर चढ़ा हुआ सवार उसे अंकुश से मार रहा हो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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