श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 51: जटायु तथा रावण का घोर युद्ध और रावण के द्वारा जटायु का वध  »  श्लोक 28
 
 
श्लोक  3.51.28 
 
 
नहि जातु दुराधर्षौ काकुत्स्थौ तव रावण।
धर्षणं चाश्रमस्यास्य क्षमिष्येते तु राघवौ॥ २८॥
 
 
अनुवाद
 
  रावण! ककुत्स्थकुलभूषण रघुकुल नंदन श्रीराम और लक्ष्मण दोनों भाई अजेय वीर हैं। वे तुम्हारे द्वारा अपने आश्रम पर किए गए इस अपमानजनक अपराध को कभी क्षमा नहीं करेंगे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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