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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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सर्ग 51: जटायु तथा रावण का घोर युद्ध और रावण के द्वारा जटायु का वध
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श्लोक 27
श्लोक
3.51.27
बद्धस्त्वं कालपाशेन क्व गतस्तस्य मोक्ष्यसे।
वधाय बडिशं गृह्य सामिषं जलजो यथा॥ २७॥
अनुवाद
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तुम काल के चक्र में बंध गए हो और तुम इस चक्र से कैसे मुक्त हो सकोगे? जैसे पानी में पैदा होने वाली मछली अपनी मौत को बुलाने के लिए ही मांसयुक्त हुक को निगल जाती है, उसी तरह तुम भी सीता का अपहरण करके अपनी मौत को आमंत्रित कर रहे हो।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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