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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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सर्ग 51: जटायु तथा रावण का घोर युद्ध और रावण के द्वारा जटायु का वध
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श्लोक 26
श्लोक
3.51.26
अनुबन्धमजानन्त: कर्मणामविचक्षणा:।
शीघ्रमेव विनश्यन्ति यथा त्वं विनशिष्यसि॥ २६॥
अनुवाद
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‘अपने कर्मोंका परिणाम न जाननेवाले अज्ञानीजन जैसे शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं, उसी प्रकार तुम भी विनाशके गर्तमें गिरोगे॥ २६॥
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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