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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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सर्ग 51: जटायु तथा रावण का घोर युद्ध और रावण के द्वारा जटायु का वध
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श्लोक 25
श्लोक
3.51.25
समित्रबन्धु: सामात्य: सबल: सपरिच्छद:।
विषपानं पिबस्येतत् पिपासित इवोदकम्॥ २५॥
अनुवाद
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जैसे प्यासा मनुष्य जल पीता है, उसी प्रकार तुम अपने मित्रों, संबंधियों, मंत्रियों, सेना और परिवार के साथ इस विष को पी रहे हो।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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