श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 51: जटायु तथा रावण का घोर युद्ध और रावण के द्वारा जटायु का वध  »  श्लोक 22-23
 
 
श्लोक  3.51.22-23 
 
 
तं प्रहृष्टं निधायाङ्के रावणं जनकात्मजाम्।
गच्छन्तं खड्गशेषं च प्रणष्टहतसाधनम्॥ २२॥
गृध्रराज: समुत्पत्य रावणं समभिद्रवत्।
समावार्य महातेजा जटायुरिदमब्रवीत्॥ २३॥
 
 
अनुवाद
 
  रावण जब जनककिशोरी को गोद में लेकर प्रसन्न होकर जाने लगा उस समय उसके अन्य सभी साधन तो नष्ट हो चुके थे किंतु एक तलवार अभी भी उसके पास शेष थी। उसे जाते देख महातेजस्वी गृध्रराज जटायु उड़कर रावण की ओर दौड़े और रोककर इस प्रकार बोले-।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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