वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
»
काण्ड 3: अरण्य काण्ड
»
सर्ग 51: जटायु तथा रावण का घोर युद्ध और रावण के द्वारा जटायु का वध
»
श्लोक 15
श्लोक
3.51.15
काञ्चनोरश्छदान् दिव्यान् पिशाचवदनान् खरान्।
तांश्चास्य जवसम्पन्नाञ्जघान समरे बली॥ १५॥
अनुवाद
play_arrowpause
तदनन्तर उस बलशाली योद्धा ने युद्ध के मैदान में पिशाच के समान मुंह और छाती पर सोने के कवच वाले तेज रफ़्तार गधों को भी मार डाला।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.