श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 51: जटायु तथा रावण का घोर युद्ध और रावण के द्वारा जटायु का वध  »  श्लोक 14
 
 
श्लोक  3.51.14 
 
 
तच्चाग्निसदृशं दीप्तं रावणस्य शरावरम्।
पक्षाभ्यां च महातेजा व्यधुनोत् पतगेश्वर:॥ १४॥
 
 
अनुवाद
 
  रावण का कवच अग्नि की तरह दमक रहा था। उस महातेजस्वी पक्षिराज ने अपने विशाल पंखों के वार से उसे छिन्न-भिन्न कर दिया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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