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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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सर्ग 51: जटायु तथा रावण का घोर युद्ध और रावण के द्वारा जटायु का वध
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श्लोक 11
श्लोक
3.51.11
ततोऽन्यद् धनुरादाय रावण: क्रोधमूर्च्छित:।
ववर्ष शरवर्षाणि शतशोऽथ सहस्रश:॥ ११॥
अनुवाद
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क्रोधित रावण ने दूसरा धनुष धारण कर, शत-सहस्त्र बाणों की वर्षा की।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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