श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 51: जटायु तथा रावण का घोर युद्ध और रावण के द्वारा जटायु का वध  »  श्लोक 1
 
 
श्लोक  3.51.1 
 
 
इत्युक्त: क्रोधताम्राक्षस्तप्तकाञ्चनकुण्डल:।
राक्षसेन्द्रोऽभिदुद्राव पतगेन्द्रममर्षण:॥ १॥
 
 
अनुवाद
 
  राक्षसराज रावण, जटायु के ऐसा कहने पर क्रोध और अमर्ष से भर गया। उसकी आँखें लाल हो गईं और वह तपाये हुए सोने के कुण्डलों से झलमलाते हुए पक्षिराज जटायु की ओर दौड़ा।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.