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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 3: अरण्य काण्ड
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सर्ग 50: जटायु का रावण को सीताहरण के दुष्कर्म से निवृत्त होने के लिये समझाना और अन्त में युद्ध के लिये ललकारना
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श्लोक 25
श्लोक
3.50.25
किं नु शक्यं मया कर्तुं गतौ दूरं नृपात्मजौ।
क्षिप्रं त्वं नश्यसे नीच तयोर्भीतो न संशय:॥ २५॥
अनुवाद
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इस समय मैं क्या कर सकता हूँ, वे दोनों राजकुमार बहुत दूर जा चुके हैं। ओ नीच! यदि मैं उन्हें बुलाने जाऊँ तो, तुम उन दोनों से भयभीत होकर शीघ्र ही आँखों से ओझल हो जाओगे, इसमें कोई संदेह नहीं है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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