श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 50: जटायु का रावण को सीताहरण के दुष्कर्म से निवृत्त होने के लिये समझाना और अन्त में युद्ध के लिये ललकारना  »  श्लोक 22
 
 
श्लोक  3.50.22 
 
 
न शक्तस्त्वं बलाद्धर्तुं वैदेहीं मम पश्यत:।
हेतुभिर्न्यायसंयुक्तैर्ध्रुवां वेदश्रुतीमिव॥ २२॥
 
 
अनुवाद
 
  तुम मेरी आँखों के सामने बलपूर्वक विदेह नन्दिनी सीता का अपहरण नहीं कर सकते, जिस तरह से कोई अपनी युक्तियों के बल पर वैदिक श्रुति को पलट नहीं सकता जो न्यायसंगत कारणों से सत्य सिद्ध होती है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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