श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 50: जटायु का रावण को सीताहरण के दुष्कर्म से निवृत्त होने के लिये समझाना और अन्त में युद्ध के लिये ललकारना  »  श्लोक 21
 
 
श्लोक  3.50.21 
 
 
वृद्धोऽहं त्वं युवा धन्वी सरथ: कवची शरी।
न चाप्यादाय कुशली वैदेहीं मे गमिष्यसि॥ २१॥
 
 
अनुवाद
 
  अब मैं बूढ़ा हो गया हूँ, परंतु तुम यौवन की ऊर्जा से परिपूर्ण हो। मेरे पास युद्ध के लिए कोई साधन नहीं है, लेकिन तुम्हारे पास धनुष, कवच, बाण और रथ सब कुछ है। फिर भी, इन सभी साधनों के बावजूद तुम सीता को सुरक्षित रूप से नहीं ले जा सकोगे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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