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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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सर्ग 50: जटायु का रावण को सीताहरण के दुष्कर्म से निवृत्त होने के लिये समझाना और अन्त में युद्ध के लिये ललकारना
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श्लोक 19
श्लोक
3.50.19
यत् कृत्वा न भवेद् धर्मो न कीर्तिर्न यशो ध्रुवम्।
शरीरस्य भवेत् खेद: कस्तत् कर्म समाचरेत्॥ १९॥
अनुवाद
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कर्म करने से न तो धर्म का पालन होता हो, न ही कीर्ति मिलती हो और न ही चिरस्थायी यश प्राप्त होता हो, उल्टा शरीर को दुख ही हो, तो ऐसे कर्म को कौन करेगा?
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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