श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 50: जटायु का रावण को सीताहरण के दुष्कर्म से निवृत्त होने के लिये समझाना और अन्त में युद्ध के लिये ललकारना  »  श्लोक 16
 
 
श्लोक  3.50.16 
 
 
क्षिप्रं विसृज वैदेहीं मा त्वा घोरेण चक्षुषा।
दहेद् दहनभूतेन वृत्रमिन्द्राशनिर्यथा॥ १६॥
 
 
अनुवाद
 
  रावण! अब शीघ्र ही विदेह नरेश की पुत्री सीता को मुक्त कर दो। ऐसा न हो कि श्रीरामचन्द्र जी की अग्नि के समान भयंकर दृष्टि तुम्हें जलाकर भस्म कर दे। जिस प्रकार इन्द्र के वज्र ने वृत्रासुर का विनाश कर दिया था, उसी प्रकार श्रीराम की क्रोध भरी दृष्टि तुम्हें जलाकर भस्म कर देगी।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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