वहाँ उनको आकाश में श्रेष्ठ रथ पर विराजमान देवताओं के स्वामी इन्द्रदेव का दर्शन हुआ, जो पृथ्वी का स्पर्श नहीं कर रहे थे। उनका प्रकाशमान शरीर सूर्य और अग्नि के समान प्रकाशित हो रहा था। वे अपने तेजस्वी शरीर से देदीप्यमान हो रहे थे। उनके पीछे और भी बहुत-से देवता थे। उनके चमकदार आभूषण चमक रहे थे और उन्होंने साफ-सुथरे कपड़े पहने हुए थे।