श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 5: श्रीराम, लक्ष्मण और सीता का शरभङ्ग मुनि के आश्रम पर जाना, देवताओं का दर्शन करना और मुनि से सम्मानित होना तथा शरभङ्ग मुनि का ब्रह्मलोक-गमन  »  श्लोक 5-6
 
 
श्लोक  3.5.5-6 
 
 
विभ्राजमानं वपुषा सूर्यवैश्वानरप्रभम्।
रथप्रवरमारूढमाकाशे विबुधानुगम्॥ ५॥
असंस्पृशन्तं वसुधां ददर्श विबुधेश्वरम्।
सम्प्रभाभरणं देवं विरजोऽम्बरधारिणम्॥ ६॥
 
 
अनुवाद
 
  वहाँ उनको आकाश में श्रेष्ठ रथ पर विराजमान देवताओं के स्वामी इन्द्रदेव का दर्शन हुआ, जो पृथ्वी का स्पर्श नहीं कर रहे थे। उनका प्रकाशमान शरीर सूर्य और अग्नि के समान प्रकाशित हो रहा था। वे अपने तेजस्वी शरीर से देदीप्यमान हो रहे थे। उनके पीछे और भी बहुत-से देवता थे। उनके चमकदार आभूषण चमक रहे थे और उन्होंने साफ-सुथरे कपड़े पहने हुए थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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