श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 5: श्रीराम, लक्ष्मण और सीता का शरभङ्ग मुनि के आश्रम पर जाना, देवताओं का दर्शन करना और मुनि से सम्मानित होना तथा शरभङ्ग मुनि का ब्रह्मलोक-गमन  »  श्लोक 43
 
 
श्लोक  3.5.43 
 
 
स पुण्यकर्मा भुवने द्विजर्षभ:
पितामहं सानुचरं ददर्श ह।
पितामहश्चापि समीक्ष्य तं द्विजं
ननन्द सुस्वागतमित्युवाच ह॥ ४३॥
 
 
अनुवाद
 
  पुण्यकर्म करने वाले द्विजश्रेष्ठ शरभङ्ग ने ब्रह्मलोक में परिचारकों से घिरे हुए पितामह ब्रह्माजी का दर्शन किया। ब्रह्माजी भी उस महान ब्राह्मण को देखकर बहुत प्रसन्न हुए और बोले- ‘महामुनि आपका स्वागत है’।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्येऽरण्यकाण्डे पञ्चम: सर्ग:॥ ५॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके अरण्यकाण्डमें पाँचवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ ५॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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