श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 5: श्रीराम, लक्ष्मण और सीता का शरभङ्ग मुनि के आश्रम पर जाना, देवताओं का दर्शन करना और मुनि से सम्मानित होना तथा शरभङ्ग मुनि का ब्रह्मलोक-गमन  »  श्लोक 37
 
 
श्लोक  3.5.37 
 
 
इमां मन्दाकिनीं राम प्रतिस्रोतामनुव्रज।
नदीं पुष्पोडुपवहां ततस्तत्र गमिष्यसि॥ ३७॥
 
 
अनुवाद
 
  श्रीराम! इस मन्दाकिनी नदी के उद्गम के विपरीत दिशा में इसके किनारे-किनारे चले जाइये। ये फूलों के समान छोटी-छोटी नावों से पार की जा सकती है या फिर पुष्पमयी नाव को बहाकर पार की जा सकती है। इस तरह आप वहाँ पहुँच जायेंगे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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