श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 5: श्रीराम, लक्ष्मण और सीता का शरभङ्ग मुनि के आश्रम पर जाना, देवताओं का दर्शन करना और मुनि से सम्मानित होना तथा शरभङ्ग मुनि का ब्रह्मलोक-गमन  »  श्लोक 28
 
 
श्लोक  3.5.28 
 
 
मामेष वरदो राम ब्रह्मलोकं निनीषति।
जितमुग्रेण तपसा दुष्प्रापमकृतात्मभि:॥ २८॥
 
 
अनुवाद
 
  श्रीराम! ये वर देने वाले इन्द्र मुझे ब्रह्मलोक ले जाना चाहते हैं। मैंने अपनी घोर तपस्या से उस लोक को जीत लिया है। जिसकी इन्द्रियाँ वश में नहीं हैं, ऐसे पुरुषों के लिए वह बहुत ही दुर्लभ है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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