मामेष वरदो राम ब्रह्मलोकं निनीषति।
जितमुग्रेण तपसा दुष्प्रापमकृतात्मभि:॥ २८॥
अनुवाद
श्रीराम! ये वर देने वाले इन्द्र मुझे ब्रह्मलोक ले जाना चाहते हैं। मैंने अपनी घोर तपस्या से उस लोक को जीत लिया है। जिसकी इन्द्रियाँ वश में नहीं हैं, ऐसे पुरुषों के लिए वह बहुत ही दुर्लभ है।