श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 5: श्रीराम, लक्ष्मण और सीता का शरभङ्ग मुनि के आश्रम पर जाना, देवताओं का दर्शन करना और मुनि से सम्मानित होना तथा शरभङ्ग मुनि का ब्रह्मलोक-गमन  »  श्लोक 14
 
 
श्लोक  3.5.14 
 
 
ये हया: पुरुहूतस्य पुरा शक्रस्य न: श्रुता:।
अन्तरिक्षगता दिव्यास्त इमे हरयो ध्रुवम्॥ १४॥
 
 
अनुवाद
 
  हमलोगों ने पहले देवराज इन्द्र के जिन दिव्य घोड़ों के बारे में सुना था, निश्चित रूप से आकाश में अब उन्हें ही विराजमान देख रहे हैं। वे दिव्य अश्व निश्चय ही वैसे ही हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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