ये हया: पुरुहूतस्य पुरा शक्रस्य न: श्रुता:।
अन्तरिक्षगता दिव्यास्त इमे हरयो ध्रुवम्॥ १४॥
अनुवाद
हमलोगों ने पहले देवराज इन्द्र के जिन दिव्य घोड़ों के बारे में सुना था, निश्चित रूप से आकाश में अब उन्हें ही विराजमान देख रहे हैं। वे दिव्य अश्व निश्चय ही वैसे ही हैं।