श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 5: श्रीराम, लक्ष्मण और सीता का शरभङ्ग मुनि के आश्रम पर जाना, देवताओं का दर्शन करना और मुनि से सम्मानित होना तथा शरभङ्ग मुनि का ब्रह्मलोक-गमन  »  श्लोक 1-3
 
 
श्लोक  3.5.1-3 
 
 
हत्वा तु तं भीमबलं विराधं राक्षसं वने।
तत: सीतां परिष्वज्य समाश्वास्य च वीर्यवान्॥ १॥
अब्रवीद् भ्रातरं रामो लक्ष्मणं दीप्ततेजसम्।
कष्टं वनमिदं दुर्गं न च स्मो वनगोचरा:॥ २॥
अभिगच्छामहे शीघ्रं शरभङ्गं तपोधनम्।
आश्रमं शरभङ्गस्य राघवोऽभिजगाम ह॥ ३॥
 
 
अनुवाद
 
  श्रीराम ने वन में उस भयंकर और बलशाली राक्षस विराध का वध करके सीता को हृदय से लगाकर सान्त्वना दी और उद्दीप्त तेज वाले भाई लक्ष्मण से इस प्रकार कहा — ‘सुमित्रा नन्दन! यह दुर्गम वन बहुत कष्टप्रद है, हमलोग इसके पहले कभी ऐसे वनों में नहीं रहे हैं (इसलिए यहाँ के कष्टों का न तो अनुभव है और न अभ्यास ही है)। अच्छा! हमलोग अब शीघ्र ही तपोधन शरभङ्गजी के पास चलें’—ऐसा कहकर श्रीरामचन्द्रजी शरभङ्ग मुनि के आश्रम पर गये।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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