श्रीराम ने वन में उस भयंकर और बलशाली राक्षस विराध का वध करके सीता को हृदय से लगाकर सान्त्वना दी और उद्दीप्त तेज वाले भाई लक्ष्मण से इस प्रकार कहा — ‘सुमित्रा नन्दन! यह दुर्गम वन बहुत कष्टप्रद है, हमलोग इसके पहले कभी ऐसे वनों में नहीं रहे हैं (इसलिए यहाँ के कष्टों का न तो अनुभव है और न अभ्यास ही है)। अच्छा! हमलोग अब शीघ्र ही तपोधन शरभङ्गजी के पास चलें’—ऐसा कहकर श्रीरामचन्द्रजी शरभङ्ग मुनि के आश्रम पर गये।