श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 49: रावण द्वारा सीता का अपहरण, सीता का विलाप और उनके द्वारा जटायु का दर्शन  »  श्लोक 2
 
 
श्लोक  3.49.2 
 
 
स मैथिलीं पुनर्वाक्यं बभाषे वाक्यकोविद:।
नोन्मत्तया श्रुतौ मन्ये मम वीर्यपराक्रमौ॥ २॥
 
 
अनुवाद
 
  वह बातचीत करने में कुशल था। उसने मिथिलेशकुमारी सीता से फिर इस प्रकार कहना आरम्भ किया — ‘मेरी समझ में तुम पागल हो गयी हो, इसलिए तुमने मेरे बल और पराक्रम की बातों का कोई भी ध्यान नहीं दिया है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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