श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 49: रावण द्वारा सीता का अपहरण, सीता का विलाप और उनके द्वारा जटायु का दर्शन  »  श्लोक 15-16
 
 
श्लोक  3.49.15-16 
 
 
इत्युक्त्वा मैथिलीं वाक्यं प्रियार्हां प्रियवादिनीम्॥ १५॥
अभिगम्य सुदुष्टात्मा राक्षस: काममोहित:।
जग्राह रावण: सीतां बुध: खे रोहिणीमिव॥ १६॥
 
 
अनुवाद
 
  माता सीता ने प्रिय एवं श्रेष्ठ वचन कहे, फिर भी उस दुष्टात्मा राक्षस रावण ने काम के वशीभूत होकर उनसे अप्रिय वचन कहे। इसके बाद वह सीता के पास गया और उन्हें पकड़ लिया, जैसे बुध ने आकाश में अपनी माता रोहिणी को पकड़ लिया था।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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