श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 49: रावण द्वारा सीता का अपहरण, सीता का विलाप और उनके द्वारा जटायु का दर्शन  »  श्लोक 13-14h
 
 
श्लोक  3.49.13-14h 
 
 
त्यज्यतां मानुषो भावो मयि भाव: प्रणीयताम्।
राज्याच्च्युतमसिद्धार्थं रामं परिमितायुषम्॥ १३॥
कैर्गुणैरनुरक्तासि मूढे पण्डितमानिनि।
 
 
अनुवाद
 
  राम के प्रति अपने लगाव को त्याग दो और मुझ पर अपना स्नेह व्यक्त करो। अपने आप को बुद्धिमान समझने वाली मूर्ख नारी, वह राम जो राज्य से रहित है, जिसका मनोरथ कभी पूरा नहीं हुआ और जिसकी आयु सीमित है, उसमें तुम किन गुणों के कारण आसक्त हो?
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.