अङ्गुल्या न समो रामो मम युद्धे स मानुष:।
तव भाग्येन सम्प्राप्तं भजस्व वरवर्णिनि॥ १९॥
अनुवाद
सुंदरी! युद्ध में मनुष्यजाति का प्रभु श्रीराम भी मेरी एक उँगली के बराबर भी नहीं है। तुम्हारे भाग्य से मैं यहाँ आया हूँ। तुम मेरी पत्नी बनो और मुझे स्वीकार करो।