श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 47: सीता का रावण को अपना और पति का परिचय देकर वन में आने का कारण बताना, रावण का उन्हें अपनी पटरानी बनाने की इच्छा प्रकट करना और सीता का उसे फटकारना  »  श्लोक 49
 
 
श्लोक  3.47.49 
 
 
इतीव तद्वाक्यमदुष्टभावा
सुदुष्टमुक्त्वा रजनीचरं तम्।
गात्रप्रकम्पाद् व्यथिता बभूव
वातोद्धता सा कदलीव तन्वी॥ ४९॥
 
 
अनुवाद
 
  सीता की नीयत में कोई बुराई न थी, फिर भी उस राक्षस को यह अत्यन्त दुःखजनक बात कहकर सीता रोष से काँपने लगीं। उनके शरीर में कंपन होने लगा, जिससे वे कृशकाय हो गईं। वायु से हिलती हुई केले के पेड़ की तरह सीता व्यथित हो उठीं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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