श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 47: सीता का रावण को अपना और पति का परिचय देकर वन में आने का कारण बताना, रावण का उन्हें अपनी पटरानी बनाने की इच्छा प्रकट करना और सीता का उसे फटकारना  »  श्लोक 45
 
 
श्लोक  3.47.45 
 
 
यदन्तरं सिंहसृगालयोर्वने
यदन्तरं स्यन्दनिकासमुद्रयो:।
सुराग्रॺसौवीरकयोर्यदन्तरं
तदन्तरं दाशरथेस्तवैव च॥ ४५॥
 
 
अनुवाद
 
  वन में रहने वाले सिंह और सियार में, समुद्र और छोटी नदी में तथा अमृत और काँजी में जो अंतर होता है, वही अंतर दशरथ नन्दन श्रीराम में और तुझमें है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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