श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 47: सीता का रावण को अपना और पति का परिचय देकर वन में आने का कारण बताना, रावण का उन्हें अपनी पटरानी बनाने की इच्छा प्रकट करना और सीता का उसे फटकारना  »  श्लोक 42-43h
 
 
श्लोक  3.47.42-43h 
 
 
अवसज्य शिलां कण्ठे समुद्रं तर्तुमिच्छसि।
सूर्याचन्द्रमसौ चोभौ पाणिभ्यां हर्तुमिच्छसि॥ ४२॥
यो रामस्य प्रियां भार्यां प्रधर्षयितुमिच्छसि।
 
 
अनुवाद
 
  क्या तुम अपने गले में पत्थर बांधकर समुद्र पार करना चाहते हो? क्या तुम सूर्य और चंद्रमा को दोनों हाथों से हथियाना चाहते हो? जो श्री रामचंद्रजी की प्यारी पत्नी का अपमान करना चाहता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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