श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 47: सीता का रावण को अपना और पति का परिचय देकर वन में आने का कारण बताना, रावण का उन्हें अपनी पटरानी बनाने की इच्छा प्रकट करना और सीता का उसे फटकारना  »  श्लोक 4
 
 
श्लोक  3.47.4 
 
 
उषित्वा द्वादश समा इक्ष्वाकूणां निवेशने।
भुञ्जाना मानुषान् भोगान् सर्वकामसमृद्धिनी॥ ४॥
 
 
अनुवाद
 
  द्वादश वर्षों तक इक्ष्वाकु वंश के राजा दशरथ के महल में रहकर मैंने अपने पति के साथ समस्त मानवीय सुखों का आनंद लिया है। वहाँ मैं हमेशा अपनी मनोवांछित इच्छाओं की पूर्ति करती रही हूँ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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