श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 47: सीता का रावण को अपना और पति का परिचय देकर वन में आने का कारण बताना, रावण का उन्हें अपनी पटरानी बनाने की इच्छा प्रकट करना और सीता का उसे फटकारना  »  श्लोक 39-41
 
 
श्लोक  3.47.39-41 
 
 
क्षुधितस्य च सिंहस्य मृगशत्रोस्तरस्विन:।
आशीविषस्य वदनाद् दंष्ट्रामादातुमिच्छसि॥ ३९॥
मन्दरं पर्वतश्रेष्ठं पाणिना हर्तुमिच्छसि।
कालकूटं विषं पीत्वा स्वस्तिमान् गन्तुमिच्छसि॥ ४०॥
अक्षि सूच्या प्रमृजसि जिह्वया लेढि च क्षुरम्।
राघवस्य प्रियां भार्यामधिगन्तुं त्वमिच्छसि॥ ४१॥
 
 
अनुवाद
 
  ‘तू श्रीरामकी प्यारी पत्नीको हस्तगत करना चाहता है। जान पड़ता है, अत्यन्त वेगशाली मृगवैरी भूखे सिंह और विषधर सर्पके मुखसे उनके दाँत तोड़ लेना चाहता है, पर्वतश्रेष्ठ मन्दराचलको हाथसे उठाकर ले जानेकी इच्छा करता है, कालकूट विषको पीकर कुशलपूर्वक लौट जानेकी अभिलाषा रखता है तथा आँखको सूईसे पोंछता और छुरेको जीभसे चाटता है॥
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.