श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 47: सीता का रावण को अपना और पति का परिचय देकर वन में आने का कारण बताना, रावण का उन्हें अपनी पटरानी बनाने की इच्छा प्रकट करना और सीता का उसे फटकारना  »  श्लोक 38
 
 
श्लोक  3.47.38 
 
 
पादपान् काञ्चनान् नूनं बहून् पश्यसि मन्दभाक्।
राघवस्य प्रियां भार्यां यस्त्वमिच्छसि राक्षस॥ ३८॥
 
 
अनुवाद
 
  ‘अभागे राक्षस! तेरा इतना साहस! तू श्रीरघुनाथजीकी प्यारी पत्नीका अपहरण करना चाहता है! निश्चय ही तुझे बहुत-से सोनेके वृक्ष दिखायी देने लगे हैं—अब तू मौतके निकट जा पहुँचा है॥ ३८॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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